ग़ज़ल
ख़ोददारयों के खून को अरज़ां न कर सके
हम अपने जोहरों को नमएां न कर सके
हो कर ख़राब मे तरे घाम तो भला दये
लीकन ग़म हयात का दरमां न कर सके
टोटा तलसम अहद महबत कुछ इस तरह
फर आरज़ो की शमा फ़रोज़ां न कर सके
हर शे क़रीब आके कशश अपनी खो गी
वह भी अलाज शौक़ गरीज़ां न करसके
किस दरजह दिल शकन थे महबत के हादसे
हम ज़नदगी में फर कोई अरमां न करसके
मएोसयों ने छीन लिये दिल के वलोले
वह भी नशात रोह का सामां न कर सके
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Via chitthajagat.in
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